पुल Poetry (page 13)

एक तितली उड़ी

इमरान शमशाद

जल कर जिस ने जल को देखा

इमरान शमशाद

हम आज-कल हैं नामा-नवीसी की ताव पर

इमदाद अली बहर

राखी बंधन

इमाम अाज़म

गर्द-ओ-ग़ुबार धूप के आँचल पे छा गए

इमाम अाज़म

पहनाई

इज्तिबा रिज़वी

चश्म-ए-तर को ज़बान कर बैठे

इफ़्तिख़ार राग़िब

तेरी आँखों की चमक बस और इक पल है अभी

इफ़्तिख़ार नसीम

बे-ख़बर मुझ से मिरे दिल में हमेशा हँसता

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

बनती है सँवरती है बिखर जाती है दुनिया

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

गुमनाम सिपाही की क़ब्र पर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

थकन तो अगले सफ़र के लिए बहाना था

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे

इब्राहीम अश्क

ग़लत-फ़हमी की सरहद पार कर के

इब्न-ए-मुफ़्ती

झुलसी सी इक बस्ती में

इब्न-ए-इंशा

ऐ मिरे सोच-नगर की रानी

इब्न-ए-इंशा

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

हम जंगल के जोगी हम को एक जगह आराम कहाँ

इब्न-ए-इंशा

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ

इब्न-ए-इंशा

अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले

इब्न-ए-इंशा

लोगों ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए

हुसैन माजिद

दिल को दरून-ए-ख़्वाब का मौसम बोझल रखता है

हुमैरा रहमान

उन के सब झूट मो'तबर ठहरे

हिना हैदर

हरीफ़-ए-विसाल

हिमायत अली शाएर

पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा

हातिम अली मेहर

कब तलक पीवेगा तू तर-दामनों से मिल के मुल

हसरत अज़ीमाबादी

हर घड़ी मत रूठ उस से फेर पल में मिल न जा

हसरत अज़ीमाबादी

ज़रा सी चोट लगी थी कि चलना भूल गए

हसीब सोज़

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