पुल Poetry (page 11)
जब कि सारी काएनात उस की निगहबानी में है
रोहित सोनी ‘ताबिश’
वीनस
रियाज़ लतीफ़
ये कहाँ से हम गए हैं कहाँ कहें क्या तिरी तग-ओ-ताज़ में
रियाज़ ख़ैराबादी
नज़र आती है दूर की सूरत
रियाज़ ख़ैराबादी
मासूम ख़्वाहिशों की पशीमानियों में था
रियाज़ मजीद
जब अगले साल यही वक़्त आ रहा होगा
रियाज़ मजीद
हो गया है एक इक पल काटना भारी मुझे
रियाज़ मजीद
अब के मिले तो हम दोनों ही
रेनू नय्यर
हर आने वाले पल से डर रहा हूँ
रज़्ज़ाक़ अरशद
हमारे अज़ाबों का क्या पूछते हैं
रज़्ज़ाक़ अरशद
यूँ खुले बंदों मोहब्बत का न चर्चा करना
रज़्ज़ाक़ अफ़सर
अब भी उसी तरह से इसे इंतिज़ार है
रज़ी रज़ीउद्दीन
ख़ुश्बू हैं तो हर दौर को महकाएँगे हम लोग
राज़ी अख्तर शौक़
जिस पल मैं ने घर की इमारत ख़्वाब-आसार बनाई थी
राज़ी अख्तर शौक़
दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई
राज़ी अख्तर शौक़
ये किस दयार के हैं किस के ख़ानदान से हैं
रज़ा मौरान्वी
सैकड़ों पुल बने फ़ासले भी मिटे
रौनक़ नईम
पत्ते तमाम हल्क़ा-ए-सरसर में रह गए
रऊफ़ ख़ैर
ना-ख़ुश गदाई से न वो शाही से ख़ुश हुए
रऊफ़ ख़ैर
कोई रस्ता कोई रहरव कोई अपना नहीं मिलता
राशिद क़य्यूम अनसर
एक मुंजमिद लम्हा
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
मौसम के मुताबिक़ कोई सामाँ भी नहीं है
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
आँख खुली तो मुझ को ये इदराक हुआ
राशिद हामिदी
अब तो इक पल के लिए भी न गंवाएँगे तुम्हें
राशिद अनवर राशिद
ये सोच कर मैं रुका था कि तू पुकारेगा
राशिद अनवर राशिद
अब तो इक पल के लिए भी न गंवाएँगे तुम्हें
राशिद अनवर राशिद
मिरी शनाख़्त के हर नक़्श को मिटाता है
रशीदुज़्ज़फ़र
ज़ख़्म इस ज़ख़्म पे तहरीर किया जाएगा
रम्ज़ी असीम
ये ज़ख़्म ज़ख़्म बदन और नम फ़ज़ाओं में
राम अवतार गुप्ता मुज़्तर
वक़्त-ए-रुख़्सत वो आँसू बहाने लगे
राम अवतार गुप्ता मुज़्तर
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