पुल Poetry (page 12)

वो एक अक्स कि पल भर नज़र में ठहरा था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ये ज़रा सा कुछ और एक-दम बे-हिसाब सा कुछ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

तमाम रास्ता फूलों भरा है मेरे लिए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मैं उस की बात की तरदीद करने वाला था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दिलों में ख़ाक सी उड़ती है क्या न जाने क्या

राजेन्द्र मनचंदा बानी

छुपी है तुझ में कोई शय उसे न ग़ारत कर

राजेन्द्र मनचंदा बानी

चमकती आँख में सहरा दिखाई साफ़ देता है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है

राजेश रेड्डी

यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है

राजेश रेड्डी

हमें हमारी बीवियों से बचाओ

राजा मेहदी अली ख़ाँ

इरफ़ान

राज नारायण राज़

इरफ़ान

राज नारायण राज़

ग़ुरूब

राज नारायण राज़

कोई पत्थर ही किसी सम्त से आया होता

राज नारायण राज़

हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है

रईस फ़रोग़

चुप है आग़ाज़ में, फिर शोर-ए-अजल पड़ता है

इरफ़ान सत्तार

वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं

इरफ़ान अहमद मीर

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

इक़बाल साजिद

लगा दी काग़ज़ी मल्बूस पर मोहर-ए-सबात अपनी

इक़बाल साजिद

ज़ीस्त तकरार-ए-नफ़स हो जैसे

इक़बाल माहिर

जो हो सके तो कभी इतनी मेहरबानी कर

इक़बाल अासिफ़

ज़रा सी बात से मंज़र बदल भी सकता था

इक़बाल अंजुम

जब तक कि ख़ूब वाक़िफ़-ए-राज़-ए-निहाँ न हूँ

इंशा अल्लाह ख़ान

अन-देखी ज़मीं पर

इंजिला हमेश

दिसम्बर आ गया है

इंजील सहीफ़ा

रोते हैं जब भी हम दिसम्बर में

इंद्र सराज़ी

लिक्खेंगे न इस हार के अस्बाब कहाँ तक

इनाम-उल-हक़ जावेद

ख़ुद अपने उजाले से ओझल रहा है दिया जल रहा है

इनाम नदीम

हैं घर की मुहाफ़िज़ मिरी दहकी हुई आँखें

इम्तियाज़ साग़र

सूदी बेगम

इमरान शमशाद

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