वो एक अक्स कि पल भर नज़र में ठहरा था
तमाम उम्र का अब सिलसिला है मेरे लिए
Jaun Eliya
Rahat Indori
Habib Jalib
Anwar Masood
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(512) Peoples Rate This
दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला
ओस से प्यास कहाँ बुझती है
औरत कुत्ता और पड़ोस
किसी मक़ाम से कोई ख़बर न आने की
दमक रहा था बहुत यूँ तो पैरहन उस का
शफ़क़ शजर मौसमों के ज़ेवर नए नए से
बगूले उस के सर पर चीख़ते थे
अली-बिन-मुत्तक़ी रोया
वो जिसे अब तक समझता था मैं पत्थर, सामने था
चली डगर पर कभी न चलने वाला मैं
सफ़र है मिरा अपने डर की तरफ़