पुल Poetry (page 18)

फिर मरहला-ए-ख़्वाब-ए-बहाराँ से गुज़र जा

दिल अय्यूबी

इस जहाँ में प्यार महके ज़िंदगी बाक़ी रहे

देवमणि पांडेय

इक क़तरे को दरिया समझा मैं भी कैसा पागल हूँ

देवमणि पांडेय

सुनहरी मछली

दीप्ति मिश्रा

सुना है ख़ुद को

दीप्ति मिश्रा

सलोनी शाम के आँगन में जब दो वक़्त मिलते हैं

दीपक क़मर

सौग़ात

दाऊद ग़ाज़ी

रूह-ए-आवारा

दाऊद ग़ाज़ी

ख़ुश-फमी-ए-हुनर ने सँभलने नहीं दिया

दरवेश भारती

तसलसुल से गुमाँ लिक्खा गया है

दानियाल तरीर

भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं

दाग़ देहलवी

दुनिया पत्थर फेंक रही है झुँझला कर फ़र्ज़ानों पर

डी. राज कँवल

दोनों की आरज़ू में चमक बरक़रार है

चित्रांश खरे

कैसा वो मौसम था ये तो समझ न पाए हम

चंद्र प्रकाश शाद

कभी हवा ने कभी उड़ते पत्थरों ने किया

चंद्र प्रकाश शाद

तुम्हारी चुप मिरा आईना है

बुशरा एजाज़

जिस ने जाना जहाँ तमाशा है

बबल्स होरा सबा

जिस ने जाना जहाँ तमाशा है

बबल्स होरा सबा

हैराँ हूँ कि अब लाऊँ कहाँ से मैं ज़बाँ और

बिस्मिल साबरी

नाम उस का

बिमल कृष्ण अश्क

पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

मिलती मुद्दत में है और पल में हँसी जाती है

भवेश दिलशाद

कहाँ पहुँचेगा वो कहना ज़रा मुश्किल सा लगता है

भवेश दिलशाद

कभी सुकूँ कभी सब्र-ओ-क़रार टूटेगा

भारत भूषण पन्त

आज-कल के शबाब देखे हैं

बशीर महताब

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है

बशीर बद्र

अजीब रात थी कल तुम भी आ के लौट गए

बशीर बद्र

उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला है

बशीर बद्र

मिरी ज़बाँ पे नए ज़ाइक़ों के फल लिख दे

बशीर बद्र

मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा

बशीर बद्र

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