कदम Poetry (page 43)

टूट गया हवा का ज़ोर सैल-ए-बला उतर गया

अहमद मुश्ताक़

शबनम को रेत फूल को काँटा बना दिया

अहमद मुश्ताक़

मंज़र-ए-सुबह दिखाने उसे लाया न गया

अहमद मुश्ताक़

लाग़र हैं जिस्म रंग हैं काले पड़े हुए

अहमद मुश्ताक़

कहाँ की गूँज दिल-ए-ना-तवाँ में रहती है

अहमद मुश्ताक़

अश्क दामन में भरे ख़्वाब कमर पर रक्खा

अहमद मुश्ताक़

क़दम कुछ ऐसा उठा आख़िरी क़दम कि 'लतीफ़'

अहमद लतीफ़

मैं खो गया हूँ कहाँ आशियाँ बनाते हुए

अहमद लतीफ़

ग़ुबार-ए-अब्र बन गया कमाल कर दिया गया

अहमद ख़याल

ग़ुबार अब्र बन गया कमाल कर दिया गया

अहमद ख़याल

दिल से बाहर आज तक हम ने क़दम रक्खा नहीं

अहमद जावेद

अन-पढ़ गूँगे का रजज़

अहमद जावेद

चाक करते हैं गरेबाँ इस फ़रावानी से हम

अहमद जावेद

शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए

अहमद हुसैन माइल

क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब

अहमद हुसैन माइल

हो गए मुज़्तर देखते ही वो हिलती ज़ुल्फ़ें फिरती नज़र हम

अहमद हुसैन माइल

आफ़्ताब आए चमक कर जो सर-ए-जाम-ए-शराब

अहमद हुसैन माइल

अबद

अहमद हमेश

उधर की शय इधर कर दी गई है

अहमद हमेश

सुब्ह-ए-फ़िराक़ अल-अमाँ वस्ल की शाम अल-अमाँ

अहमद हमेश

मुँह अँधेरे घर से निकले फिर थे हंगामे बहुत

अहमद हमदानी

ज़ेर-ए-लब

अहमद फ़राज़

कर गए कूच कहाँ

अहमद फ़राज़

कनीज़

अहमद फ़राज़

अभी हम ख़ूबसूरत हैं

अहमद फ़राज़

इश्क़ नश्शा है न जादू जो उतर भी जाए

अहमद फ़राज़

अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए

अहमद अज़ीम

हमें न देखिए हम ग़म के मारे जैसे हैं

अहमद अता

चप्पा चप्पा उस की गली का रहा है मेरे ज़ेर-ए-क़दम

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

इस के घर से मेरे घर तक एक कहानी बीच में है

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

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