कदम Poetry (page 1)

सीढ़ियाँ

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

भए कबीर उदास

हबीब जालिब

ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से

अहमद फ़ाख़िर

क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए

एहतिशाम हुसैन

ये जहान-ए-आब-ओ-गिल लगता है इक माया मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

हादसे उम्र-भर आज़माते रहे

देवेश दिक्षित

ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी

आमिर अमीर

ख़्वाबों ख़यालों की अप्सरा

दौर आफ़रीदी

रात-दिन लब पे न हो क्यूँकि बयान-ए-देहली

फ़ुग़ाँ के साथ तिरे राहत-ए-क़रार चले

अब ज़मीं पर क़दम नहीं टिकते

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

पुराने रंग में अश्क-ए-ग़म ताज़ा मिलाता हूँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

दूर तक इक सराब देखा है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ज़िंदगी आज़ार थी आज़ार है तेरे बग़ैर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

तन्हाई न पूछ अपनी कि साथ अहल-ए-जुनूँ के

ज़ुहूर नज़र

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

दिल में रक्खा था शरार-ए-ग़म को आँसू जान के

ज़ुहैर कंजाही

बशारत पानी की

ज़ुबैर रिज़वी

हर क़दम सैल-ए-हवादिस से बचाया है मुझे

ज़ुबैर रिज़वी

अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है

ज़ुबैर अली ताबिश

इसी नदामत से उस के कंधे झुके हुए हैं

ज़िया मज़कूर

जिस भी लफ़्ज़ पे उँगलियाँ रख दे साज़ करे

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

उफ़्ताद तबीअत से इस हाल को हम पहुँचे

ज़िया जालंधरी

ख़ून के दरिया बह जाते हैं ख़ैर और ख़ैर के बीच

ज़िया जालंधरी

फ़रिश्ते इम्तिहान-ए-बंदगी में हम से कम निकले

ज़िया फ़तेहाबादी

ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझो

ज़ेहरा निगाह

इस रहगुज़र में अपना क़दम भी जुदा मिला

ज़ेहरा निगाह

हमें कहा जाएगा

ज़ीशान साहिल

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