रास्ता Poetry (page 3)

सफ़र ख़ुद-रफ़्तगी का भी अजब अंदाज़ था

ज़ेहरा निगाह

इस रहगुज़र में अपना क़दम भी जुदा मिला

ज़ेहरा निगाह

हर ख़ार इनायत था हर इक संग सिला था

ज़ेहरा निगाह

हमें तो आदत-ए-ज़ख़्म-ए-सफ़र है क्या कहिए

ज़ेहरा निगाह

एक तेरा ग़म जिस को राह-ए-मो'तबर जानें

ज़ेहरा निगाह

जवाहर-लाल यूनवर्सिटी के तलबा के लिए

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

गर्द-ए-सफ़र में राह ने देखा नहीं मुझे

ज़ीशान साहिल

सर उठाया मज़हबी दीवार पर पटका हुआ

ज़िशान इलाही

ये इश्क़ इक इम्तिहान तो ले मैं पास कर लूँ

ज़ीशान साजिद

ऐसी तश्बीह फ़क़त हुस्न की बदनामी है

ज़ेबा

सूरज ने इक नज़र मिरे ज़ख़्मों पे डाल के

ज़ेब ग़ौरी

सेहन-ए-चमन में जाना मेरा और फ़ज़ा में बिखर जाना

ज़ेब ग़ौरी

मरने का सुख जीने की आसानी दे

ज़ेब ग़ौरी

ग़ार के मुँह से ये चट्टान हटाने के लिए

ज़ेब ग़ौरी

ऐ संग-ए-राह आबला-पाई न दे मुझे

ज़रीना सानी

महशरिस्तान-ए-जुनूँ में दिल-ए-नाकाम आया

ज़रीफ़ लखनवी

मैकनिक शाएर

ज़रीफ़ जबलपूरी

ख़ाक सहराओं की पलकों पे सजा ली हम ने

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

हाइल दिलों की राह में कुछ तो अना भी है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

तिरे बग़ैर कटे दिन न शब गुज़रती है

ज़की तारिक़

ये जो बिफरे हुए धारे लिए फिरता हूँ मैं

ज़करिय़ा शाज़

उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए

ज़करिय़ा शाज़

उस पे करना मिरे नालों ने असर छोड़ दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

ख़ाक पर ही मिरे आँसू हैं न दामन में कहीं

ज़ेब उस्मानिया

कुछ ऐसे हाल-ओ-माज़ी तेरे अफ़्साने भी होते हैं

ज़ेब बरैलवी

मिरे दिल को मोहब्बत ख़ूब गरमाए तो अच्छा हो

ज़हीर अहमद ताज

गेसू-ए-शेर-ओ-अदब के पेच सुलझाता हूँ मैं

ज़हीर अहमद ताज

वो हमें राह में मिल जाएँ ज़रूरी तो नहीं

ज़ाहिदा ज़ैदी

मिरे लोगो! मैं ख़ाली हाथ आया हूँ

ज़ाहिद मसूद

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