रंग Poetry (page 50)

है यक दो नफ़स सैर-ए-जहान-ए-गुज़राँ और

हमीद नसीम

नौ-ब-नौ ये जल्वा-ज़ाई ये जमाल-ए-रंग-रंग

हमीद नसीम

क़ुबूल कर के तेरा ग़म ख़ुशी ख़ुशी मैं ने

हमीद नागपुरी

कभी तो रंग-ए-हुस्न-ए-यार देखूँ

हमीद कौसर

हवा की पुश्त पर

हमीद अलमास

हर्फ़-ए-ग़ज़ल से रंग-ए-तमन्ना भी छीन ले

हमीद अलमास

बदले हुए से लगते हैं अब मौसमों के रंग

हमदम कशमीरी

मिलता है हर चराग़ को साया ज़मीन पर

हमदम कशमीरी

एक क़तरा न कहीं ख़ूँ का बहा मेरे बअ'द

हमदम कशमीरी

रुख़्सार पर है रंग-ए-हया का फ़रोग़ आज

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

मरीज़-ए-इश्क़ की जुज़-मर्ग दुनिया में दवा क्यूँ हो

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

कुछ बात ही थी ऐसी कि थामे जिगर गए

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

वो जो अब तक लम्स है उस लम्स का पैकर बने

हकीम मंज़ूर

ख़ुद अपने-आप से मिलने का मैं अपना इरादा हूँ

हकीम मंज़ूर

कब इस ज़मीं की सम्त समुंदर पलट कर आए

हकीम मंज़ूर

हो आँख अगर ज़िंदा गुज़रती है न क्या क्या

हकीम मंज़ूर

है इज़्तिराब हर इक रंग को बिखरने का

हकीम मंज़ूर

ढल गया जिस्म में आईने में पत्थर में कभी

हकीम मंज़ूर

छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा

हकीम मंज़ूर

अज़िय्यतों को किसी तरह कम न कर पाया

हकीम मंज़ूर

अपनी नज़र से टूट कर अपनी नज़र में गुम हुआ

हकीम मंज़ूर

फ़स्ल-ए-ग़म की जब नौ-ख़ेज़ी हो जाती है

हैदर क़ुरैशी

न सर छुपाने को घर था न आब-ओ-दाना था

हैदर अली जाफ़री

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

हैदर अली आतिश

उन्नाब-ए-लब का अपने मज़ा कुछ न पूछिए

हैदर अली आतिश

क़ुदरत-ए-हक़ है सबाहत से तमाशा है वो रुख़

हैदर अली आतिश

ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए

हैदर अली आतिश

मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद

हैदर अली आतिश

क्या क्या न रंग तेरे तलबगार ला चुके

हैदर अली आतिश

ख़्वाहाँ तिरे हर रंग में ऐ यार हमीं थे

हैदर अली आतिश

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