बदले हुए से लगते हैं अब मौसमों के रंग
पड़ता है आसमान का साया ज़मीन पर
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(786) Peoples Rate This
हुआ है सामने आँखों के ख़ानदाँ आबाद
वहम कोई गुमाँ में था ही नहीं
छटी है राह से गर्द-ए-मलाल मेरे लिए
ज़रा सोचो तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ है
यक़ीन कैसे करूँगा गुमाँ में रहता हूँ
हम ढूँडते फिरते रहे तस्वीर हवा की
ज़बाँ के साथ यहाँ ज़ाइक़ा भी रक्खा है
हम अपने आप को फिर आज़मा के देखेंगे
एक क़तरा न कहीं ख़ूँ का बहा मेरे बअ'द
मिलता है हर चराग़ को साया ज़मीन पर
है मशक़्क़त मिरी इनआ'म किसी और का है