रंग Poetry (page 56)

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब

ग़ालिब

नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में

ग़ालिब

न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से

ग़ालिब

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है

ग़ालिब

मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ख़राबात चाहिए

ग़ालिब

लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती

ग़ालिब

क्या तंग हम सितम-ज़दगाँ का जहान है

ग़ालिब

कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइए

ग़ालिब

की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं

ग़ालिब

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है

ग़ालिब

करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़

ग़ालिब

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी

ग़ालिब

जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआअ'

ग़ालिब

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना

ग़ालिब

इश्क़ तासीर से नौमीद नहीं

ग़ालिब

हुस्न-ए-बे-परवा ख़रीदार-ए-माता-ए-जल्वा है

ग़ालिब

हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं

ग़ालिब

हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी

ग़ालिब

है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल

ग़ालिब

है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे

ग़ालिब

गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज

ग़ालिब

ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ

ग़ालिब

धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था

ग़ालिब

दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए

ग़ालिब

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

ग़ालिब

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

ग़ालिब

बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार

ग़ालिब

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए

ग़ालिब

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

ग़ालिब

अगर हो चश्म-ए-हक़ीक़त तो देख क्या हूँ मैं

ग़व्वास क़ुरैशी

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