रास्ता Poetry (page 3)

दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम

आ गई धूप मिरी छाँव के पीछे पीछे

तौक़ीर रज़ा

थकन की तल्ख़ियों को अरमुग़ाँ अनमोल देती है

ताैफ़ीक़ साग़र

पागल वहशी तन्हा तन्हा उजड़ा उजड़ा दिखता हूँ

तरकश प्रदीप

अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जाता

तारिक़ नईम

मंज़िल मिले न कोई भी रस्ता दिखाई दे

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

बस का सफ़र

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

ठीक है उजली याद का रिश्ता अपने दिल से टूटा भी

सय्यद अारिफ़

बे-लुत्फ़ है ये सोच कि सौदा नहीं रहा

सय्यद अमीन अशरफ़

दिल ज़बाँ ज़ेहन मिरे आज सँवरना चाहें

स्वप्निल तिवारी

चारों ओर समुंदर है

स्वप्निल तिवारी

वापस घर जा ख़त्म हुआ

सालेह नदीम

यूँ तो सब सामान पड़ा है

सुरेन्द्र शजर

सदियों का दर्द मेरे कलेजे में पाल कर

सूरज नारायण

नोक-ए-शमशीर की घात का सिलसिला यूँ पस-ए-आइना कल उतारा गया

सूरज नारायण

हर एक सम्त इशारे थे और रस्ता भी

सुनील आफ़ताब

तुझ को पाने के लिए ख़ाक-ए-तमन्ना हो जाऊँ

सुल्तान अख़्तर

जब तू मुझ से रूठ गया था

सुलेमान ख़ुमार

शरीक-ए-ग़म कोई कब मो'तबर निकलता है

सिद्दीक़ मुजीबी

यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं

शुजा ख़ावर

जाने क्या बात है मानूस बहुत लगता है

शोहरत बुख़ारी

दिल उस से लगा जिस से रूठा भी नहीं जाता

शोहरत बुख़ारी

तिरे आँगन में है जो पेड़ फूलों से लदा होगा

शोभा कुक्कल

बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई

ज़ौक़

चुप गुज़र जाता हूँ हैरान भी हो जाता हूँ

शहपर रसूल

मेरी वहशत का तिरे शहर में चर्चा होगा

शाज़ तमकनत

बड़े ख़ुलूस से दामन पसारता है कोई

शाज़ तमकनत

मुझे हँसना पड़ा आख़िर

शारिक़ कैफ़ी

इक दिन ख़ुद को अपने पास बिठाया हम ने

शारिक़ कैफ़ी

इस से पहले कि चराग़ों को वो बुझता देखे

शमीम रविश

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