रास्ता Poetry (page 15)

अंधेरा सा क्या था उबलता हुआ

अहमद महफ़ूज़

जो तिरे ग़म की गिरानी से निकल सकता है

अहमद ख़याल

दरिया में दश्त दश्त में दरिया सराब है

अहमद ख़याल

न घर है कोई न सामान कुछ रहा बाक़ी

अहमद हमेश

काली दीवार

अहमद फ़राज़

हच-हाईकर

अहमद फ़राज़

था अबस तर्क-ए-तअल्लुक़ का इरादा यूँ भी

अहमद फ़राज़

अब क्या सोचें क्या हालात थे किस कारन ये ज़हर पिया है

अहमद फ़राज़

मैं अपने वास्ते रस्ता नया निकालता हूँ

आफ़ताब इक़बाल शमीम

मक़ाम-ए-शौक़ से आगे भी इक रस्ता निकलता है

आफ़ताब हुसैन

अस्ल हालत का बयाँ ज़ाहिर के साँचों में नहीं

आफ़ताब हुसैन

परेशानी है जी घबरा रहा है

अफ़सर मेरठी

वो जान-ए-नौ-बहार जिधर से गुज़र गया

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

दर्द तंहाई की पस्ली से निकल कर आया

आदिल मंसूरी

वो तुम तक कैसे आता

आदिल मंसूरी

दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का

आदिल मंसूरी

घर का रस्ता भी मिला था शायद

अदा जाफ़री

कहीं टूटते हैं

अबरार अहमद

कि जैसे कुंज-ए-चमन से सबा निकलती है

अबरार अहमद

क्या ख़बर कब से प्यासा था सहरा

आबिद आलमी

ख़मोशी मेरी लय में गुनगुनाना चाहती है

अब्दुर रऊफ़ उरूज

जब थी मंज़िल नज़र में तो रस्ता था एक

अब्दुल्लाह जावेद

हर इक रस्ते पे चल कर सोचते हैं

अब्दुल्लाह जावेद

समुंदर पार आ बैठे मगर क्या

अब्दुल्लाह जावेद

कोई रिश्ता न हो फिर भी रिश्ते बहुत

अब्दुल्लाह जावेद

जुनूँ अब मंज़िलें तय कर रहा है

अब्दुल हमीद अदम

मिरी झोली में वो लफ़्ज़ों के मोती डाल देता है

अब्दुल अहद साज़

मैं ने अपनी रूह को अपने तन से अलग कर रक्खा है

अब्दुल अहद साज़

मुझे रस्ता नहीं मिलता

अब्बास ताबिश

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