रोग Poetry (page 4)

वो ख़ुद तो मर ही गया था मुझे भी मार गया

अख़तर इमाम रिज़वी

जीते-जी दुख सुख के लम्हे आते जाते रहते हैं

अख़तर इमाम रिज़वी

तिरे जैसा मेरा भी हाल था न सुकून था न क़रार था

ऐतबार साजिद

न गुमान मौत का है न ख़याल ज़िंदगी का

ऐतबार साजिद

जंगल का सन्नाटा मेरा दुश्मन है

अहमद ज़फ़र

यहाँ हर लफ़्ज़ मअनी से जुदा है

अहमद शनास

कभी तुम ने कुछ तो दिया नहीं कभी हम ने कुछ तो लिया नहीं

अहमद हमेश

ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे

अहमद फ़राज़

कनीज़

अहमद फ़राज़

क्यूँ न हम अहद-ए-रिफ़ाक़त को भुलाने लग जाएँ

अहमद फ़राज़

गुमाँ यही है कि दिल ख़ुद उधर को जाता है

अहमद फ़राज़

क्या ख़बर मेरे ही सीने में पड़ी सोती हो

आफ़ताब हुसैन

माना अपनी जान को वो भी दिल का रोग लगाएँगे

अबु मोहम्मद सहर

बिफरी लहरें रात अँधेरी और बला की आँधी है

अबरार हामिद

दिलबर ये वो है जिस ने दिल को दग़ा दिया है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

इंतिहा होने से पहले सोच ले

अस्नाथ कंवल

सभी को अपना समझता हूँ क्या हुआ है मुझे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

सभी को अपना समझता हूँ क्या हुआ है मुझे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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