रोग Poetry (page 1)

नदी किनारे बैठे रहना अच्छा है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

अब तो आते हैं सभी दिल को दुखाने वाले

ज़िया ज़मीर

तमन्नाएँ अज़िय्यत का नज़ारा हम न कहते थे

ज़ीशान साजिद

ज़िंदगी यूँ भी कभी मुझ को सज़ा देती है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

गुल हैं तो आप अपनी ही ख़ुश्बू में सोचिए

ज़फ़र सहबाई

क़ैद-ए-मज़हब वाक़ई इक रोग ही

वज़ीर अली सबा लखनवी

जो अदू-ए-बाग़ हो बरबाद हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

ज़ात के रोग में

वज़ीर आग़ा

रंग और रूप से जो बाला है

वज़ीर आग़ा

आती जाती लहरें

वली मदनी

निफ़ाक़

उरूज क़ादरी

पुरानी मोटर

सय्यद ज़मीर जाफ़री

इतनी मुद्दत बा'द मिले हो कुछ तो दिल का हाल कहो

सय्यद शकील दस्नवी

छोटी सी ये बात सही पर खींचे है ये तूल मियाँ

सय्यद शकील दस्नवी

क्या हुआ जो सितारे चमकते नहीं दाग़ दिल के फ़रोज़ाँ करो दोस्तो

सूफ़ी तबस्सुम

इंसाँ हवस के रोग का मारा है इन दिनों

सोज़ नजीबाबादी

कुछ ऐसी टूट के शहर-ए-जुनूँ की याद आई

सिद्दीक़ शाहिद

हूँ किस मक़ाम पे दिल में तिरे ख़बर न लगे

सिद्दीक़ शाहिद

आसमाँ था तुम थे या मेरा सितारा कौन था

शकील जाज़िब

अगर हमारे ही दिल में ठिकाना चाहिए था

शकील जमाली

आख़िरी खिलौने का मातम

शकील आज़मी

ख़ाक से उठना ख़ाक में सोना ख़ाक को बंदा भूल गया

शाइस्ता मुफ़्ती

अपने रोज़ ओ शब का आलम कर्बला से कम नहीं

शहज़ाद क़मर

मिरे रोग का न मलाल कर मिरे चारा-गर

शहज़ाद नय्यर

चराग़ ख़ुद ही बुझाया बुझा के छोड़ दिया

शहज़ाद अहमद

ताक़-ए-जाँ में तेरे हिज्र के रोग संभाल दिए

शहनाज़ नूर

अपने हमराह मोहब्बत के हवाले रखना

शाहिद फ़रीद

थी कुछ न ख़ता फिर भी पशेमान रहे हैं

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

हिर्स-ओ-हवस के नाम ये दिन रात की तलब

सौरभ शेखर

नज़र भी आया तो ख़ुद से छुपा लिया मैं ने

सरफ़राज़ नवाज़

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