रोग Poetry (page 3)

इक रोज़ हुए थे कुछ इशारात ख़फ़ी से

फ़िराक़ गोरखपुरी

देखा तुझे तो आँखों ने ऐवाँ सजा लिए

फ़ारिग़ बुख़ारी

मिरे शे'रों में फ़नकारी नहीं है

फ़रहत एहसास

बोला हैं रंग कितने ज़माने के और भी

फ़ाख़िरा बतूल

तुम ही कहो क्या करना है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चादर और चार-दीवारी

फ़हमीदा रियाज़

तन्हाई का रोग न पाल

एजाज़ तालिब

लंदन में जश्न-ए-ग़ालिब

दिलावर फ़िगार

एक सब आग एक सब पानी

दानियाल तरीर

इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को

भारत भूषण पन्त

जल्वों का उन के दिल को तलब-गार कर दिया

बशीरुद्दीन राज़

सुब्ह का भेद मिला क्या हम को

बाक़ी सिद्दीक़ी

कुछ नहीं होता शब भर सोचों का सरमाया होता है

अज़रक़ अदीम

मैं एक रेत का पैकर था और बिखर भी गया

असलम महमूद

बचपन के हैं ख़्वाब सुहाने तितली फूल और मैं

असलम फ़ैज़ी

पलकों पे इंतिज़ार का मौसम सजा लिया

अशोक साहनी

ये रोग लगा है अजब हमें जो जान भी ले कर टला नहीं

अशफ़ाक़ आमिर

इक पल में क्या कुछ बदल गया जब बे-ख़बरों को ख़बर हुई

अशफ़ाक़ आमिर

कुछ मैं ने कही है न अभी उस ने सुनी है

आरज़ू लखनवी

पिन्हाँ था ख़ुश-निगाहों की दीदार का मरज़

अरशद अली ख़ान क़लक़

फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया

अमीर मीनाई

ऐनक के दोनों शीशे ही अटे हुए थे धूल में

अमीक़ हनफ़ी

दिल की हर बात तिरी मुझ को बता देती है

अम्बर जोशी

जीते जी मौत के तुम मुँह में न जाना हरगिज़

अल्ताफ़ हुसैन हाली

वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें

अली सरदार जाफ़री

हिज्र बना आज़ार सफ़र कैसे कटता

अली अकबर मंसूर

उस की चाह में नाम नहीं आने वाला

अख्तर शुमार

बदनाम हो रहा हूँ

अख़्तर शीरानी

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

अख़्तर शीरानी

ये आने वाला ज़माना हमें बताएगा

अख़्तर नज़्मी

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