सामना Poetry (page 3)

यूँही आती नहीं हवा मुझ में

इदरीस बाबर

कर बुरा तो भला नहीं होता

इब्न-ए-मुफ़्ती

तारों से माहताब से और कहकशाँ से क्या

हीरा लाल फ़लक देहलवी

बुतों का सामना है और मैं हूँ

हातिम अली मेहर

बाम पर आने लगे वो सामना होने लगा

हसरत मोहानी

दुआ में ज़िक्र क्यूँ हो मुद्दआ का

हसरत मोहानी

बाम पर आने लगे वो सामना होने लगा

हसरत मोहानी

जो ग़म के शो'लों से बुझ गए थे हम उन के दाग़ों का हार लाए

हसन नईम

आँखों से टपके ओस तो जाँ में नमी रहे

हसन नईम

खुली जो आँख मिरी सामना क़ज़ा से हुआ

हक़ीर

वो जो अब तक लम्स है उस लम्स का पैकर बने

हकीम मंज़ूर

छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा

हकीम मंज़ूर

या-अली कह कर बुत-ए-पिंदार तोड़ा चाहिए

हैदर अली आतिश

तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया

हैदर अली आतिश

हंगाम-ए-नज़'अ महव हूँ तेरे ख़याल का

हैदर अली आतिश

हसीनों से फ़क़त साहिब-सलामत दूर की अच्छी

हफ़ीज़ जौनपुरी

न साथ देगा कोई राह आश्ना मेरा

गुलनार आफ़रीन

आगे आगे शर फैलाता जाता हूँ

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

लरज़ जाता है थोड़ी देर को तार-ए-नफ़स मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुआ रौशन दम-ए-ख़ुर्शीद से फिर रंग पानी का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़-ए-ख़ाना-ए-दिल को सुपुर्द-ए-बाद कर दूँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अबस ही महव-ए-शब-ओ-रोज़ वो दुआ में था

फ़र्रुख़ जाफ़री

इस औज पर न उछालो मुझे हवा कर के

फ़ारिग़ बुख़ारी

ज़मीं से अर्श तलक सिलसिला हमारा भी था

फ़रहत एहसास

मैं एक बूँद समुंदर हुआ तो कैसे हुआ

फ़राग़ रोहवी

बहुत सा काम तो पहले ही कर लिया मैं ने

फ़ैज़ान हाशमी

जब वो बुत हम-कलाम होता है

दाग़ देहलवी

हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से

दाग़ देहलवी

लुत्फ़ से मतलब न कुछ मेरे सताने से ग़रज़

बेख़ुद देहलवी

पास-ए-अदब मुझे उन्हें शर्म-ओ-हया न हो

बेदम शाह वारसी

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