बाम पर आने लगे वो सामना होने लगा
अब तो इज़हार-ए-मोहब्बत बरमला होने लगा
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बदल-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार कहाँ से लाऊँ
लुत्फ़ की उन से इल्तिजा न करें
तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए
बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी
कट गई एहतियात-ए-इश्क़ में उम्र
ताबाँ जो नूर-ए-हुस्न ब-सिमा-ए-इश्क़ है
हम ने किस दिन तिरे कूचे में गुज़ारा न किया
पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
उन को रुस्वा मुझे ख़राब न कर
पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदाँ था
क्या काम उन्हें पुर्सिश-ए-अरबाब-ए-वफ़ा से