पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदाँ था
हर नग़्मा-ए-कृष्ण बाँसुरी का
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निगाह-ए-यार जिसे आश्ना-ए-राज़ करे
बाम पर आने लगे वो सामना होने लगा
उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ
दिलों को फ़िक्र-ए-दो-आलम से कर दिया आज़ाद
रानाई-ए-ख़याल को ठहरा दिया गुनाह
हम क्या करें अगर न तिरी आरज़ू करें
अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हम
है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी
दिल में क्या क्या हवस-ए-दीद बढ़ाई न गई
छेड़ा है दस्त-ए-शौक़ ने मुझ से ख़फ़ा हैं वो
याद कर वो दिन कि तेरा कोई सौदाई न था
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है