पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदाँ था
हर नग़्मा-ए-कृष्ण बाँसुरी का
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Gulzar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1410) Peoples Rate This
आरज़ू तेरी बरक़रार रहे
आसान-ए-हक़ीकी है न कुछ सहल-ए-मजाज़ी
उन को रुस्वा मुझे ख़राब न कर
इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हम
चाहत मिरी चाहत ही नहीं आप के नज़दीक
मिलते हैं इस अदा से कि गोया ख़फ़ा नहीं
बरकतें सब हैं अयाँ दौलत-ए-रूहानी की
अल्लाह-री जिस्म-ए-यार की ख़ूबी कि ख़ुद-ब-ख़ुद
निगाह-ए-यार जिसे आश्ना-ए-राज़ करे
तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए
कट गई एहतियात-ए-इश्क़ में उम्र
मालूम सब है पूछते हो फिर भी मुद्दआ'