कट गई एहतियात-ए-इश्क़ में उम्र
हम से इज़हार-ए-मुद्दआ न हुआ
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देखने आए थे वो अपनी मोहब्बत का असर
सभी कुछ हो चुका उन का हमारा क्या रहा 'हसरत'
शिकवा-ए-ग़म तिरे हुज़ूर किया
याद कर वो दिन कि तेरा कोई सौदाई न था
इल्तिफ़ात-ए-यार था इक ख़्वाब-ए-आग़ाज़-ए-वफ़ा
ख़ूब-रूयों से यारियाँ न गईं
मानूस हो चला था तसल्ली से हाल-ए-दिल
दीदनी हैं दिल-ए-ख़राब के रंग
है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी
गुज़रे बहुत उस्ताद मगर रंग-ए-असर में
तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए
कभी की थी जो अब वफ़ा कीजिएगा