गुज़रे बहुत उस्ताद मगर रंग-ए-असर में
बे-मिस्ल है 'हसरत' सुख़न-ए-'मीर' अभी तक
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तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए
दुआ में ज़िक्र क्यूँ हो मुद्दआ का
कोशिशें हम ने कीं हज़ार मगर
हम जौर-परस्तों पे गुमाँ तर्क-ए-वफ़ा का
सितम हो जाए तम्हीद-ए-करम ऐसा भी होता है
पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदाँ था
बद-गुमाँ आप हैं क्यूँ आप से शिकवा है किसे
हम ने किस दिन तिरे कूचे में गुज़ारा न किया
इल्तिफ़ात-ए-यार था इक ख़्वाब-ए-आग़ाज़-ए-वफ़ा
रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
हुस्न-ए-बे-मेहर को परवा-ए-तमन्ना क्या हो