है इंतिहा-ए-यास भी इक इब्तिदा-ए-शौक़
फिर आ गए वहीं पे चले थे जहाँ से हम
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पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदाँ था
कट गई एहतियात-ए-इश्क़ में उम्र
यूँ तो आशिक़ तिरा ज़माना हुआ
निगाह-ए-यार जिसे आश्ना-ए-राज़ करे
आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न
छेड़ नाहक़ न ऐ नसीम-ए-बहार
मानूस हो चला था तसल्ली से हाल-ए-दिल
तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी
क्या वो अब नादिम हैं अपने जौर की रूदाद से
पुर्सिश-ए-हाल पे है ख़ातिर-ए-जानाँ माइल
उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी
रोग दिल को लगा गईं आँखें