छेड़ नाहक़ न ऐ नसीम-ए-बहार
सैर-ए-गुल का यहाँ किसे है दिमाग़
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हुस्न-ए-बे-परवा को ख़ुद-बीन ओ ख़ुद-आरा कर दिया
भूल ही जाएँ हम को ये तो न हो
रोग दिल को लगा गईं आँखें
मालूम सब है पूछते हो फिर भी मुद्दआ'
बे-ज़बानी तर्जुमान-ए-शौक़ बेहद हो तो हो
आप को आता रहा मेरे सताने का ख़याल
तुझ से गरवीदा यक ज़माना रहा
ख़ूब-रूयों से यारियाँ न गईं
रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
उस बुत के पुजारी हैं मुसलमान हज़ारों
हम जौर-परस्तों पे गुमाँ तर्क-ए-वफ़ा का
क़वी दिल शादमाँ दिल पारसा दिल