देखने आए थे वो अपनी मोहब्बत का असर
कहने को ये है कि आए हैं अयादत कर के
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देखा किए वो मस्त निगाहों से बार बार
ग़ुर्बत की सुब्ह में भी नहीं है वो रौशनी
क़िस्मत-ए-शौक़ आज़मा न सके
लुत्फ़ की उन से इल्तिजा न करें
राह में मिलिए कभी मुझ से तो अज़-राह-ए-सितम
वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते
'हसरत' की भी क़ुबूल हो मथुरा में हाज़िरी
छेड़ नाहक़ न ऐ नसीम-ए-बहार
शेर दर-अस्ल हैं वही 'हसरत'
न सही गर उन्हें ख़याल नहीं
है वहाँ शान-ए-तग़ाफ़ुल को जफ़ा से भी गुरेज़
मुक़र्रर कुछ न कुछ इस में रक़ीबों की भी साज़िश है