दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया
साग़र को रंग-ए-बादा ने पुर-नूर कर दिया
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गुज़रे बहुत उस्ताद मगर रंग-ए-असर में
जो और कुछ हो तिरी दीद के सिवा मंज़ूर
इल्तिफ़ात-ए-यार था इक ख़्वाब-ए-आग़ाज़-ए-वफ़ा
निगाह-ए-यार जिसे आश्ना-ए-राज़ करे
जबीं पर सादगी नीची निगाहें बात में नरमी
और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है
क़िस्मत-ए-शौक़ आज़मा न सके
दिल में क्या क्या हवस-ए-दीद बढ़ाई न गई
पैहम दिया प्याला-ए-मय बरमला दिया
हक़ीक़त खुल गई 'हसरत' तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की
है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी