सभी कुछ हो चुका उन का हमारा क्या रहा 'हसरत'
न दीं अपना न दिल अपना न जाँ अपनी न तन अपना
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Javed Akhtar
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उस बुत के पुजारी हैं मुसलमान हज़ारों
मालूम सब है पूछते हो फिर भी मुद्दआ'
छुप के उस ने जो ख़ुद-नुमाई की
रात दिन नामा-ओ-पैग़ाम कहाँ तक दोगे
याद कर वो दिन कि तेरा कोई सौदाई न था
उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ
चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं
ख़ूब-रूयों से यारियाँ न गईं
ख़ू समझ में नहीं आती तिरे दीवानों की
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
रोग दिल को लगा गईं आँखें