रात दिन नामा-ओ-पैग़ाम कहाँ तक दोगे
साफ़ कह दीजिए मिलना हमें मंज़ूर नहीं
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(800) Peoples Rate This
ताबाँ जो नूर-ए-हुस्न ब-सिमा-ए-इश्क़ है
बुत-ए-बे-दर्द का ग़म मोनिस-ए-हिज्राँ निकला
बाम पर आने लगे वो सामना होने लगा
छुप के उस ने जो ख़ुद-नुमाई की
अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हम
बेकली से मुझे राहत होगी
क़िस्मत-ए-शौक़ आज़मा न सके
बद-गुमाँ आप हैं क्यूँ आप से शिकवा है किसे
रानाई-ए-ख़याल को ठहरा दिया गुनाह
जबीं पर सादगी नीची निगाहें बात में नरमी
अक़्ल से हासिल हुई क्या क्या पशीमानी मुझे
ऐ याद-ए-यार देख कि बा-वस्फ़-ए-रंज-ए-हिज्र