सामना Poetry (page 1)

सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े

ग़ुलाम हुसैन साजिद

वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा

अनवर अंजुम

ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

दूर किनारा

मीराजी

नज़र से छुप गए दिल से जुदा तो होना था

अजब कशाकश-ए-बीम-ओ-रजा है तन्हाई

ज़िया जालंधरी

जिस्म के रेगज़ार में शाम-ओ-सहर सदा करूँ

ज़फ़र इक़बाल

वो मेरी जान है दिल से कभी जुदा न हुआ

यूसुफ़ ज़फ़र

क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई

यगाना चंगेज़ी

काम दीवानों को शहरों से न बाज़ारों से

यगाना चंगेज़ी

कोई सूरत से गर सफ़ा हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर

वज़ीर अली सबा लखनवी

सलीक़ा बोलने का हो तो बोलो

वक़ार मानवी

पड़ा है पाँव में अब सिलसिला मोहब्बत का

वाजिद अली शाह अख़्तर

बना कर ख़ुद को जिस ने इक भला इंसान रक्खा है

वली मदनी

मेरी निगह में यार मैं उस की निगाह में

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

रऊनतों में न इतनी भी इंतिहा हो जाए

सय्यद अारिफ़

झुका के सर को चलना जिस जगह का क़ाएदा था

सिराज अजमली

हवा चली तो पसीना रगों में बैठ गया

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

तिरी नज़र सबब-ए-तिश्नगी न बन जाए

शाज़ तमकनत

ज़िंदगी हँसती है सुब्ह-ओ-शाम तेरे शहर में

शमीम फ़तेहपुरी

ख़ाना-ए-उम्मीद बे-नूर-ओ-ज़िया होने को है

शकील बदायुनी

जल्वा-ए-हुस्न-ए-करम का आसरा करता हूँ मैं

शकील बदायुनी

बहार आई किसी का सामना करने का वक़्त आया

शकील बदायुनी

वो सामने था फिर भी कहाँ सामना हुआ

शकेब जलाली

मा'दूम होती ख़ुश्बू

शहाब अख़्तर

तस्वीर-ए-इज़्तिराब सरापा बना हुआ

शफ़क़त काज़मी

ज़बाँ ख़मोश रहे तर्क-ए-मुद्दआ न करे

शायर फतहपुरी

जज़्बा-ए-मोहब्बत को तीर-ए-बे-ख़ता पाया

शाद आरफ़ी

ब-पास-ए-एहतियात-ए-आरज़ू ये बार-हा हुआ

शाद आरफ़ी

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