सांस Poetry (page 9)

इश्क़ की तक़्वीम में

हारिस ख़लीक़

हवा सैराब करती है

हारिस ख़लीक़

तेरे हुस्न की ख़ैर बना दे इक दिन का सुल्तान मुझे

हरबंस तसव्वुर

मैं जो अपने हाल से कट गया तो कई ज़मानों में बट गया

हनीफ़ असअदी

न जाने कब लिखा जाए

हमीदा शाहीन

हर ज़र्रा चश्म-ए-शौक़-ए-सर-ए-रहगुज़र है आज

हमीद नागपुरी

मिलता है हर चराग़ को साया ज़मीन पर

हमदम कशमीरी

है मशक़्क़त मिरी इनआ'म किसी और का है

हमदम कशमीरी

अंदर की दुनियाएँ मिला के एक नगर हो जाएँ

हैदर क़ुरैशी

अफ़्सुर्दगी-ए-दिल से ये रंग है सुख़न में

हफ़ीज़ जौनपुरी

लू हो सबा हो या पुर्वाई सब के साथ चलो

हबीब फख़री

शहतूत की शाख़ पे

गुलज़ार

मकान

गुलज़ार

ख़ुद-कुशी

गुलज़ार

शाम से आँख में नमी सी है

गुलज़ार

शाम से आज साँस भारी है

गुलज़ार

कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है

गुलज़ार

जब भी आँखों में अश्क भर आए

गुलज़ार

हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए

गुलज़ार

दर्द हल्का है साँस भारी है

गुलज़ार

दर्द

गुलनाज़ कौसर

बम धमाका

गुलनाज़ कौसर

हर एक साँस मुझे खींचती है उस की तरफ़

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ज़ेहन में दाएरे से बनाता रहा दूर ही दूर से मुस्कुराता रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

सिसक रही हैं थकी हवाएँ लिपट के ऊँचे सनोबरों से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नहीं है इस नींद के नगर में अभी किसी को दिमाग़ मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मैं अपने सूरज के साथ ज़िंदा रहूँगा तो ये ख़बर मिलेगी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

जहाँ भर में मिरे दिल सा कोई घर हो नहीं सकता

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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