बम धमाका

सरमा की बे-रहम फ़ज़ा में

सुर्ख़ लहू ने बहते बहते

हैरानी से

तपती हुई इस ख़ाक को देखा

अभी तो मैं इन नीली गर्म रगों में

कैसे दौड़ रहा था

बुझती हुई इक साँस की लौ ने

अपने नन्हे जीवन की

इस आख़िरी तेज़ कटीली हिचकी को झटका

दो ख़ाली नज़रें

दूर धुवें के पार

कहीं कुछ ढूँड रही थीं

अभी अभी तो नीला अम्बर

बाहें खोले तना खड़ा था

मंदी मंदी सी धूप

यहाँ कोने में आ कर लेट गई थी

फिर किस ने इस जीते-जागते

मंज़र में ये आग भरी है

काली फ़ज़ा में उड़ते रेशे

आधी-अधूरी बे-बस लाशें

सुर्ख़ लहू ने हैरानी से

जले हुए मंज़र को देखा

आख़िरी तेज़ कटीली हिचकी

टूट रही थी

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