निर्माता Poetry (page 7)

दे सकेगा न तुम्हें फिर कोई आवाज़ कहीं

सग़ीर अहमद सग़ीर अहसनी

पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए

साग़र सिद्दीक़ी

रातों को तसव्वुर है उन का और चुपके चुपके रोना है

साग़र निज़ामी

अलाउद्दीन का तरबूज़

साग़र ख़य्यामी

ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना

सफ़ी लखनवी

तालिब-ए-दीद पे आँच आए ये मंज़ूर नहीं

सफ़ी लखनवी

तराना-ए-क़ौमी

सफ़ीर काकोरवी

दुरुस्त है कि मिरा हाल अब ज़ुबूँ भी नहीं

सफ़दर मीर

दरबारी मुग़न्नी

सईदुद्दीन

ज़ात की काल कोठरी से आख़िरी नश्रिया

सईद अहमद

उदास उदास सर-ए-साग़र-ओ-सुबू भी मैं

सादिक़ नसीम

सुकूत-ए-मर्ग में क्यूँ राह-ए-नग़्मा-गर देखूँ

सादिक़ नसीम

'बेदिल' का तख़य्युल हूँ न ग़ालिब की नवा हूँ

सादिक़ नसीम

दिल को पैहम दर्द से दो-चार रहने दीजिए

सादिक़ इंदौरी

ज़ोम न कीजो शम्अ-रू बज़्म के सोज़ ओ साज़ पर

साइल देहलवी

बनते ही शहर का ये देखिए वीराँ होना

एस ए मेहदी

मोम पिघलाता रहा तेरा ख़याल

रुख़साना नूर

किसी बे-घर जहाँ का राज़ होना चाहिए था

रियाज़ लतीफ़

ये कहाँ से हम गए हैं कहाँ कहें क्या तिरी तग-ओ-ताज़ में

रियाज़ ख़ैराबादी

बात दिल की ज़बान पर आई

रियाज़ ख़ैराबादी

वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके

रिन्द लखनवी

तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना

रिन्द लखनवी

हुए जब से मोहब्बत-आश्ना हम

रिफ़अत सुलतान

होते हैं ख़त्म अब ये लम्हात ज़िंदगी के

रिफ़अत सेठी

हंगामे से वहशत होती है तन्हाई में जी घबराए है

रिफ़अत सरोश

छेड़ के साज़-ए-ज़रगरी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा है रक़्स में

राज़ी अख्तर शौक़

आए हम शहर-ए-ग़ज़ल में तो इस आग़ाज़ के साथ

राज़ी अख्तर शौक़

क्या पूछते हो मुझ को मोहब्बत में क्या मिला

रज़ा जौनपुरी

दिल को मामूर करो जज़्ब-ओ-असर से पहले

रज़ा जौनपुरी

सहरा-ए-ख़याल का दिया हूँ

रज़ा हमदानी

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