सदा Poetry (page 41)

मज़ीद कुछ नहीं बोला मैं हो गया ख़ामोश

अब्दुर्राहमान वासिफ़

वो सो रहा है ख़ुदा दूर आसमानों में

अब्दुर्रहीम नश्तर

अगर हो ख़ौफ़-ज़दा ताक़त-ए-बयाँ कैसी

अब्दुर्रहीम नश्तर

रूठे हैं हम से दोस्त हमारे कहाँ कहाँ

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

उस की जाम-ए-जम आँखें शीशा-ए-बदन मेरा

अब्दुल्लाह कमाल

मैं तेरी ही आवाज़ हूँ और गूँज रहा हूँ

अब्दुल्लाह जावेद

चाँदनी का रक़्स दरिया पर नहीं देखा गया

अब्दुल्लाह जावेद

न होवे क्यूँ के गर्दूं पे सदा दिल की बुलंद अपनी

अब्दुल वहाब यकरू

अगर नहीं क़स्द ऐ ज़ालिम मिरे दिल के सताने का

अब्दुल वहाब यकरू

करते नहीं जफ़ा भी वो तर्क-ए-वफ़ा के साथ

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

सुन रख ओ ख़ाक में आशिक़ को मिलाने वाले

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

बज़्म में वो बैठता है जब भी आगे सामने

अब्दुल मन्नान समदी

जाना कहाँ है और कहाँ जा रहे हैं हम

अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद

शाम-ए-ग़म और सितारों के सिवा

अब्दुल मजीद भट्टी

मोहतात ओ होशियार तो बे-इंतिहा हूँ मैं

अब्दुल हमीद अदम

कितनी बे-साख़्ता ख़ता हूँ मैं

अब्दुल हमीद अदम

कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ

अब्दुल हमीद अदम

इतना तो दोस्ती का सिला दीजिए मुझे

अब्दुल हमीद अदम

आज फिर रूह में इक बर्क़ सी लहराती है

अब्दुल हमीद अदम

उसे देख कर अपना महबूब प्यारा बहुत याद आया

अब्दुल हमीद

किसी का क़हर किसी की दुआ मिले तो सही

अब्दुल हमीद

नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

ईद उस परी-वश की

अब्दुल अहद साज़

आवाज़ के मोती

अब्दुल अहद साज़

लफ़्ज़ों के सहरा में क्या मा'नी के सराब दिखाना भी

अब्दुल अहद साज़

खिले हैं फूल की सूरत तिरे विसाल के दिन

अब्दुल अहद साज़

नक़्श सारे ख़ाक के हैं सब हुनर मिट्टी का है

अब्बास ताबिश

जहान-ए-मर्ग-ए-सदा में इक और सिलसिला ख़त्म हो गया है

अब्बास ताबिश

इश्क़ की जोत जगाने में बड़ी देर लगी

अब्बास ताबिश

हर तरफ़ शोर-ए-फ़ुग़ाँ है कोई सुनता ही नहीं

अब्बास रिज़वी

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