सदा Poetry (page 42)

धुआँ सा फैल गया दिल में शाम ढलते ही

अब्बास रिज़वी

बेवफ़ाई उस ने की मेरी वफ़ा अपनी जगह

अब्बास दाना

ख़मोश बैठे हो क्यूँ साज़-ए-बे-सदा की तरह

अातिश बहावलपुरी

इंतिहा होने से पहले सोच ले

अस्नाथ कंवल

सर झुकाए सर-ए-महशर जो गुनहगार आए

आसी रामनगरी

रविश उस चाल में तलवार की है

आसी ग़ाज़ीपुरी

क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे

आसी ग़ाज़ीपुरी

ठिकाने यूँ तो हज़ारों तिरे जहान में थे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

इक डूबती धड़कन की सदा लोग न सुन लें

आनिस मुईन

एक नज़्म

आनिस मुईन

हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और

आनिस मुईन

इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें

आनिस मुईन

उस के चेहरे पे तबस्सुम की ज़िया आएगी

आनन्द सरूप अंजुम

नए ज़माने के नित-नए हादसात लिखना

आनन्द सरूप अंजुम

आज़माइश में कटी कुछ इम्तिहानों में रही

आनन्द सरूप अंजुम

तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को

आलोक श्रीवास्तव

शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना

आग़ा अकबराबादी

दीवाली

आफ़ताब राईस पानीपती

दिन के सीने पे शाम का पत्थर

आदिल रज़ा मंसूरी

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