सदा Poetry (page 3)

ख़ामोशी ख़ुद अपनी सदा हो ये भी तो हो सकता है

ज़का सिद्दीक़ी

ये ख़्वाबों के साए

ज़ाहिदा ज़ैदी

वो हर्फ़-ओ-सौत-ओ-सदा

ज़ाहिदा ज़ैदी

हिकायत-ए-गुरेज़ाँ

ज़ाहिदा ज़ैदी

कल रात बहुत ज़ोर था साहिल की हवा में

ज़ाहिद मसूद

सितारे चुप हैं कि नग़्मा-सरा समुंदर है

ज़ाहिद फ़ारानी

ख़ुश्क लम्हात के दरिया में बहा दे मुझ को

ज़ाहिद फ़ारानी

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

इस दौर-ए-आफ़ियत में ये क्या हो गया हमें

ज़हीर काश्मीरी

फ़र्ज़ बरसों की इबादत का अदा हो जैसे

ज़हीर काश्मीरी

जो बे-घर हैं उन्हें घर की दुआ देती हैं दीवारें

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

ख़ैरात का मुझे कोई लालच नहीं 'ज़फ़र'

ज़फ़र इक़बाल

यहाँ सब से अलग सब से जुदा होना था मुझ को

ज़फ़र इक़बाल

सोचता हूँ कि अपनी रज़ा के लिए छोड़ दूँ

ज़फ़र इक़बाल

शब भर रवाँ रही गुल-ए-महताब की महक

ज़फ़र इक़बाल

फिर कोई शक्ल नज़र आने लगी पानी पर

ज़फ़र इक़बाल

मिला तो मंज़िल-ए-जाँ में उतारने न दिया

ज़फ़र इक़बाल

मौसम का हाथ है न हवा है ख़लाओं में

ज़फ़र इक़बाल

मैं भी शरीक-ए-मर्ग हूँ मर मेरे सामने

ज़फ़र इक़बाल

कुछ सबब ही न बने बात बढ़ा देने का

ज़फ़र इक़बाल

जो नारवा था इस को रवा करने आया हूँ

ज़फ़र इक़बाल

जिस्म के रेगज़ार में शाम-ओ-सहर सदा करूँ

ज़फ़र इक़बाल

हवा-ए-वादी-ए-दुश्वार से नहीं रुकता

ज़फ़र इक़बाल

दिल को रहीन-ए-बंद-ए-क़बा मत किया करो

ज़फ़र इक़बाल

बिखर बिखर गए अल्फ़ाज़ से अदा न हुए

ज़फ़र इक़बाल

बेवफ़ाई करके निकलूँ या वफ़ा कर जाऊँगा

ज़फ़र इक़बाल

इरादा हो अटल तो मोजज़ा ऐसा भी होता है

ज़फ़र गोरखपुरी

देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे

ज़फ़र गोरखपुरी

तिरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था

ज़फ़र गौरी

शब के तारीक समुंदर से गुज़र आया हूँ

ज़फ़र गौरी

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