सदा Poetry (page 5)

सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता

वसीम बरेलवी

मैं अपने ख़्वाब से बिछड़ा नज़र नहीं आता

वसीम बरेलवी

तिरी नज़र में तिरे मा-सिवा नहीं होगा

वक़ार वासिक़ी

साज़-ए-हस्ती में कुछ सदा ही नहीं

वामिक़ जौनपुरी

क़िर्तास पे नक़्शे हमें क्या क्या नज़र आए

वामिक़ जौनपुरी

क्या कहूँ कि क्या हूँ मैं

वलीउल्लाह वली

बुलबुल बजाए अपने तुझे हम-नवा से बहस

वलीउल्लाह मुहिब

अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले

वली मोहम्मद वली

सुनो ये ग़म की सियह रात जाने वाली है

वाली आसी

साए ने साए को सदा दी

वजद चुगताई

नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

फ़रेब-ए-राह-ए-मोहब्बत का आसरा भी नहीं

वहीदुल हसन हाश्मी

हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा

वहीदा नसीम

जो सुनना चाहो तो बोल उट्ठेंगे अँधेरे भी

वहीद अख़्तर

ज़बान-ए-ख़ल्क़ पे आया तो इक फ़साना हुआ

वहीद अख़्तर

लिपटी हुई फिरती है नसीम उन की क़बा से

वहीद अख़्तर

अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे

वहीद अख़्तर

न दरमियाँ न कहीं इब्तिदा में आया है

विशाल खुल्लर

ये सदा काश उसी ने दी हो

विकास शर्मा राज़

रोज़ ये ख़्वाब डराता हैं मुझे

विकास शर्मा राज़

मिरी वफ़ा की मुकम्मल तू दास्ताँ कर दे

विजय शर्मा अर्श

बीते वक़्त का चेहरा ढूँढता रहता है

विजय शर्मा अर्श

अँधेरी शब में चराग़-ए-रह-ए-वफ़ा देना

उषा भदोरिया

वो ध्यान की राहों में जहाँ हम को मिलेगा

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

इल्म ओ फ़न के राज़-ए-सर-बस्ता को वा करता हुआ

उमैर मंज़र

इस तरह रस्म मोहब्बत की अदा होती है

त्रिपुरारि

छब्बीस जनवरी

तिलोकचंद महरूम

इक तीर नहीं क्या तिरी मिज़्गाँ की सफ़ों में

तौसीफ़ तबस्सुम

लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा

तौक़ीर तक़ी

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