यात्रा Poetry (page 5)

आगे बढ़ूँ तो ज़र्द घटा मेरे रू-ब-रू

ज़फ़र इक़बाल

ज़िंदा भी ख़ल्क़ में हूँ मरा भी हुआ हूँ मैं

ज़फ़र इक़बाल

यूँ भी होता है कि यक दम कोई अच्छा लग जाए

ज़फ़र इक़बाल

ये बात अलग है मिरा क़ातिल भी वही था

ज़फ़र इक़बाल

यकसू भी लग रहा हूँ बिखरने के बावजूद

ज़फ़र इक़बाल

उठ और फिर से रवाना हो डर ज़ियादा नहीं

ज़फ़र इक़बाल

थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते

ज़फ़र इक़बाल

सिर्फ़ आँखें थीं अभी उन में इशारे नहीं थे

ज़फ़र इक़बाल

रुख़-ए-ज़ेबा इधर नहीं करता

ज़फ़र इक़बाल

फिर कोई शक्ल नज़र आने लगी पानी पर

ज़फ़र इक़बाल

नहीं कि दिल में हमेशा ख़ुशी बहुत आई

ज़फ़र इक़बाल

न कोई बात कहनी है न कोई काम करना है

ज़फ़र इक़बाल

न घाट है कोई अपना न घर हमारा हुआ

ज़फ़र इक़बाल

मौसम का हाथ है न हवा है ख़लाओं में

ज़फ़र इक़बाल

मैं ने कब दावा किया था सर-ब-सर बाक़ी हूँ मैं

ज़फ़र इक़बाल

मैं भी शरीक-ए-मर्ग हूँ मर मेरे सामने

ज़फ़र इक़बाल

कुछ नहीं समझा हूँ इतना मुख़्तसर पैग़ाम था

ज़फ़र इक़बाल

खड़ी है शाम कि ख़्वाब-ए-सफ़र रुका हुआ है

ज़फ़र इक़बाल

ईमाँ के साथ ख़ामी-ए-ईमाँ भी चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

हवा-ए-वादी-ए-दुश्वार से नहीं रुकता

ज़फ़र इक़बाल

गिरने की तरह का न सँभलने की तरह का

ज़फ़र इक़बाल

एक ही नक़्श है जितना भी जहाँ रह जाए

ज़फ़र इक़बाल

देखो तो कुछ ज़ियाँ नहीं खोने के बावजूद

ज़फ़र इक़बाल

चमके गा अभी मेरे ख़यालात से आगे

ज़फ़र इक़बाल

अभी तो करना पड़ेगा सफ़र दोबारा मुझे

ज़फ़र इक़बाल

इक नदी में सैकड़ों दरिया की तुग़्यानी मिली

ज़फर इमाम

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

अश्क-ए-ग़म आँख से बाहर भी नहीं आने का

ज़फ़र गोरखपुरी

टूटे तख़्ते पर समुंदर पार करने आए थे

ज़फ़र गौरी

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