यात्रा Poetry (page 7)

हम अपनी पुश्त पर खुली बहार ले के चल दिए

याक़ूब यावर

कोई बे-नाम ख़लिश उकसाए

याक़ूब राही

न चारागर न मसीहा न राहबर था मैं

याक़ूब आरिफ़

यार कब दिल की जराहत पे नज़र करता है

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

सलामत रहें दिल में घर करने वाले

यगाना चंगेज़ी

कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है

यगाना चंगेज़ी

सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र ये है

वज़ीर आग़ा

कैसे कहूँ कि मैं ने कहाँ का सफ़र किया

वज़ीर आग़ा

टीन का डिब्बा

वज़ीर आग़ा

थकन

वज़ीर आग़ा

वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगे

वज़ीर आग़ा

उड़ी जो गर्द तो इस ख़ाक-दाँ को पहचाना

वज़ीर आग़ा

तुम्हें ख़बर भी न मिली और हम शिकस्ता-हाल

वज़ीर आग़ा

सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना

वज़ीर आग़ा

मंज़र था राख और तबीअत उदास थी

वज़ीर आग़ा

ख़ुद से हुआ जुदा तो मिला मर्तबा तुझे

वज़ीर आग़ा

गुल ने ख़ुशबू को तज दिया न रहा

वज़ीर आग़ा

दिन ढल चुका था और परिंदा सफ़र में था

वज़ीर आग़ा

धार सी ताज़ा लहू की शबनम-अफ़्शानी में है

वज़ीर आग़ा

आसमाँ पर अब्र-पारे का सफ़र मेरे लिए

वज़ीर आग़ा

हम-सफ़र थम तो सही दिल को सँभालूँ तो चलूँ

वासिफ़ देहलवी

जो शख़्स मिरा दस्त-ए-हुनर काट रहा है

वसीम मलिक

हम-सफ़र तू ने परों को जो मिरे काटा है

वसीम मलिक

रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी

वसीम बरेलवी

कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को

वसीम बरेलवी

वो मेरे बालों में यूँ उँगलियाँ फिराता था

वसीम बरेलवी

उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया

वसीम बरेलवी

तुम्हें ग़मों का समझना अगर न आएगा

वसीम बरेलवी

न जाने क्यूँ मुझे उस से ही ख़ौफ़ लगता है

वसीम बरेलवी

मेरे ग़म को जो अपना बताते रहे

वसीम बरेलवी

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