यात्रा Poetry (page 9)

ख़ाक के पुतलों में पत्थर के बदन को वास्ता

वहाब दानिश

वफ़ा की मंज़िलों को हम ने इस तरह सजा लिया

वफ़ा सिद्दीक़ी

लम्हा लम्हा शोर सा बरपा हुआ अच्छा लगा

विशाल खुल्लर

सफीर-ए-इश्क़ हमें अब तो हम सफ़र कर लो

विपुल कुमार

फ़र्ज़-ए-सुपुर्दगी में तक़ाज़े नहीं हुए

विपुल कुमार

न हम-सफ़र है न हम-नवा है

विकास शर्मा राज़

शहर बेज़ार रहगुज़र तन्हा

विजय शर्मा अर्श

बारा चाँद गए पूनम के प्यार भरा इक सावन भी

विजय शर्मा अर्श

खोए हुए सहरा तक ऐ बाद-ए-सबा जाना

वारिस किरमानी

दिल प्यार के रिश्तों से मुकर भी नहीं जाता

वली मदनी

रवाँ दवाँ सू-ए-मंज़िल है क़ाफ़िला कि जो था

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

सारी दुनिया में दाना है अपने घर में कुछ भी नहीं

उनवान चिश्ती

थम ज़रा वक़्त-ए-अजल दीदार-ए-जाँ होने लगा

उम्मीद ख़्वाजा

वो ख़्वाब ही सही पेश-ए-नज़र तो अब भी है

उम्मीद फ़ाज़ली

वो ख़्वाब ही सही पेश-ए-नज़र तो अब भी है

उम्मीद फ़ाज़ली

तुम हो जो कुछ कहाँ छुपाओगे

उम्मीद फ़ाज़ली

तुम हो जो कुछ कहाँ छुपाओगे

उम्मीद फ़ाज़ली

मक़्तल-ए-जाँ से कि ज़िंदाँ से कि घर से निकले

उम्मीद फ़ाज़ली

इक ऐसा मरहला-ए-रह-गुज़र भी आता है

उम्मीद फ़ाज़ली

मिरे मालिक मुझे इस ख़ाक से बे-घर न करना

उमर फ़ारूक़

अब कू-ए-सनम चार क़दम ही का सफ़र है

उमर फ़ारूक़

घनी रात

उमर फ़ारूक़

मुझे मेहमाँ ही जानो रात भर का

उमर अंसारी

हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था

उमर अंसारी

हर तरफ़ फैला हुआ बे-सम्त बे-मंज़िल सफ़र

तुफ़ैल चतुर्वेदी

वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं

तिलोकचंद महरूम

होते हैं ख़ुश किसी की सितम-रानियों से हम

तिलोकचंद महरूम

हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना

तिलोकचंद महरूम

दिल है बेताब नज़र खोई हुई लगती है

तिलक राज पारस

पाँव में लिपटी हुई है सब के ज़ंजीर-ए-अना

तौसीफ़ तबस्सुम

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