पाँव में लिपटी हुई है सब के ज़ंजीर-ए-अना
सब मुसाफ़िर हैं यहाँ लेकिन सफ़र में कौन है
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दिल की बाज़ी हार के रोए हो तो ये भी सुन रक्खो
इक तीर नहीं क्या तिरी मिज़्गाँ की सफ़ों में
दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है
क्या ये सच है कि ख़िज़ाँ में भी चमन खिलते हैं
दिल की बात न मानी होती इश्क़ किया क्यूँ पीरी में
मेरी सूरत साया-ए-दीवार-ओ-दर में कौन है
दुख झेलो तो जी कड़ा ही रखना
तुम अच्छे थे तुम को रुस्वा हम ने किया
था पस-ए-मिज़्गान-तर इक हश्र बरपा और भी
वाहिमा होगा यहाँ कोई न आया होगा
शौक़ कहता है कि हर जिस्म को सज्दा कीजे
अजीब रंग थे दिल में जो आँसुओं में न थे