यात्रा Poetry (page 8)

क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया

वसीम बरेलवी

हम अपने आप को इक मसअला बना न सके

वसीम बरेलवी

हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए

वसीम बरेलवी

चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है

वसीम बरेलवी

भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे

वसीम बरेलवी

अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा

वसीम बरेलवी

अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है

वसीम बरेलवी

मुझ को दुनिया से बे-ख़बर कर दे

वसीम अकरम

ग़ैर-मुमकिन था ये इक काम मगर हम ने किया

वक़ार वासिक़ी

अपने अंदर उतर रहा हूँ मैं

वक़ार वासिक़ी

कभी सिसकी कभी आवाज़ा सफ़र जारी है

वक़ार ख़ान

हुस्न पर बोझ हुए उस के ही वा'दे अब तो

वली आलम शाहीन

दर-ओ-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर

आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ज़िंदगी

वहीदुद्दीन सलीम

राह-रौ चुप हैं राहबर ख़ामोश

वाहिद प्रेमी

हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा

वहीदा नसीम

हज़ारों साल सफ़र कर के फिर वहीं पहुँचे

वहीद अख़्तर

इक दश्त-ए-बे-अमाँ का सफ़र है चले-चलो

वहीद अख़्तर

पत्थरों का मुग़न्नी

वहीद अख़्तर

सहराओं में दरिया भी सफ़र भूल गया है

वहीद अख़्तर

सफ़र ही बाद-ए-सफ़र है तो क्यूँ न घर जाऊँ

वहीद अख़्तर

रहे वो ज़िक्र जो लब-हा-ए-आतिशीं से चले

वहीद अख़्तर

कतरा के गुल्सिताँ से जो सू-ए-क़फ़स चले

वहीद अख़्तर

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

वहीद अख़्तर

इक दश्त-ए-बे-अमाँ का सफ़र है चले-चलो

वहीद अख़्तर

आग अपने ही दामन की ज़रा पहले बुझा लो

वहीद अख़्तर

ख़ौफ़ नामा

वहीद अहमद

जब सफ़र की धूप में मुरझा के हम दो पल रुके

वहाब दानिश

थकावटों से बैठ के सफ़र उतारिए कहीं

वहाब दानिश

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