मुझ को दुनिया से बे-ख़बर कर दे
देख ले मुझ को मो'तबर कर दे
सुब्ह को दे दे शाम की रौनक़
शाम को दर्द की सहर कर दे
दिन चढ़े ले ले जाँ भले मेरी
जिस्म रौशन तू रात भर कर दे
उस की रग में बहे लहू मेरा
इश्क़ अंजाम-ए-हम-सफ़र कर दे
Ahmad Faraz
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(464) Peoples Rate This
कैसे उस को दिल की हालत समझाऊँ
देख उसे सब ज़िक्र हमारा करते हैं
कोई सूरत नहीं मगर उस का
इक अधूरी सी शाम बाक़ी है
जब से मैं ने इश्क़ का पैराहन पहना है
आज व'अदा वो फिर निभाएगा
आज जिस पर ये पर्दा-दारी है