यात्रा Poetry (page 74)

गया तो हुस्न न दीवार में न दर में था

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

तमाम हिज्र उसी का विसाल है उस का

अबुल हसनात हक़्क़ी

बे-नियाज़-ए-दहर कर देता है इश्क़

अबुल हसनात हक़्क़ी

बे-नियाज़ दहर कर देता है इश्क़

अबुल हसनात हक़्क़ी

बस्तियाँ लुटती हैं ख़्वाबों के नगर जलते हैं

अबु मोहम्मद सहर

जो नहीं लगती थी कल तक अब वही अच्छी लगी

अबसार अब्दुल अली

याद-ए-ख़ुदा कर बंदे यूँ नाहक़ उम्र कूँ खोना क्या

आबरू शाह मुबारक

कुछ है ख़बर फ़रिश्तों के जलते हैं पर कहाँ

अबरार शाहजहाँपुरी

अगर तू साथ चल पड़ता सफ़र आसान हो जाता

अबरार हामिद

धूप चमकी रात की तस्वीर पीली हो गई

अबरार आज़मी

वक़्त गुज़रता नहीं

अबरार अहमद

मुझे डर लगता है

अबरार अहमद

ज़मीं नहीं ये मिरी आसमाँ नहीं मेरा

अबरार अहमद

ये रह-ए-इश्क़ है इस राह पे गर जाएगा तू

अबरार अहमद

कि जैसे कुंज-ए-चमन से सबा निकलती है

अबरार अहमद

कहीं पर सुब्ह रखता हूँ कहीं पर शाम रखता हूँ

अबरार अहमद

जो भी यकजा है बिखरता नज़र आता है मुझे

अबरार अहमद

हमें ख़बर नहीं कुछ कौन है कहाँ कोई है

अबरार अहमद

गुरेज़ाँ था मगर ऐसा नहीं था

अबरार अहमद

हाथ में माहताब हो जैसे

आबिद वदूद

अगले पड़ाव पर यूँही ख़ेमा लगाओगे

आबिद मुनावरी

आलम-ए-ख़्वाब सही ख़्वाब में चलते रहिए

आबिद करहानी

ज़मीं से चल के तो पहुँचा हूँ आसमाँ तक मैं

आबिद हशरी

मिरा बदन है मगर मुझ से अजनबी है अभी

आबिद आलमी

जो कहते हैं किधर दीवानगी है

आबिद अख़्तर

सफ़र के बाद भी ज़ौक़-ए-सफ़र न रह जाए

अभिषेक शुक्ला

सफ़र के बा'द भी ज़ौक़-ए-सफ़र न रह जाए

अभिषेक शुक्ला

ख़ला के जैसा कोई दरमियान भी पड़ता

अभिषेक शुक्ला

हम ऐसे सोए भी कब थे हमें जगा लाते

अभिषेक शुक्ला

ख़ौफ़-ओ-वहशत बर-सर-ए-बाज़ार रख जाता है कौन

अब्दुस्समद ’तपिश’

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