आराम Poetry (page 4)

किस ने पाया सुकून दुनिया में

राजेश रेड्डी

घर से निकले थे हौसला कर के

राजेश रेड्डी

अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम

राजेश रेड्डी

अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है

इरफ़ान सत्तार

नगर में रहते थे लेकिन घरों से दूर रहे

इक़बाल मिनहास

ख़्वाहिश हमारे ख़ून की लबरेज़ अब भी है

इक़बाल अशहर कुरेशी

ये नहीं पहले तिरी याद से निस्बत कम थी

इक़बाल अशहर

मोहब्बत

इंजिला हमेश

गर्द-ओ-ग़ुबार धूप के आँचल पे छा गए

इमाम अाज़म

किस क़दर गुनाहों के मुर्तकिब हुए हैं हम

इकराम मुजीब

ऐ ख़ुदा भरम रखना बरक़रार इस घर का

इकराम मुजीब

चश्म-ए-तर को ज़बान कर बैठे

इफ़्तिख़ार राग़िब

आख़िरी आदमी का रजज़

इफ़्तिख़ार आरिफ़

गुलशन में ले के चल किसी सहरा में ले के चल

इब्राहीम अश्क

कोई भी शख़्स जो वहम-ओ-गुमाँ की ज़द में रहा

हीरानंद सोज़

ज़माना देखता है हंस के चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ मेरी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

चले गए हो सुकून-ओ-क़रार-ए-जाँ ले कर

हसन ताहिर

मैं जो अपने हाल से कट गया तो कई ज़मानों में बट गया

हनीफ़ असअदी

इतना सुकून तो ग़म-ए-पिन्हाँ में आ गया

हनीफ़ अख़गर

रात

हमीदा शाहीन

फ़रेब दे न कहीं अज़्म-ए-मुस्तक़िल मेरा

हामिद इलाहाबादी

है वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल-ए-आशुफ़्ता-नवा भी

हाफ़िज़ लुधियानवी

मस्तों पे उँगलियाँ न उठाओ बहार में

हफ़ीज़ जालंधरी

कुछ इस तरह से नज़र से गुज़र गया कोई

हफ़ीज़ होशियारपुरी

कुछ इस तरह से नज़र से गुज़र गया कोई

हफ़ीज़ होशियारपुरी

पैग़ाम ईद

हफ़ीज़ बनारसी

तू न हो हम-नफ़स अगर जीने का लुत्फ़ ही नहीं

हादी मछलीशहरी

दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो दिखाएँ किसी को क्या

हबीब जालिब

मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए

गुलज़ार

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