चुप्पी Poetry (page 3)

लग़्ज़िश पा-ए-होश का हर्फ़-ए-जवाज़ ले के हम

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

हर जल्वा-ए-हुस्न बे-वतन है

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

ये किस का जल्वा-ए-हैरत-फ़ज़ा निगाह में है

शकूर जावेद

आया है हर चढ़ाई के बा'द इक उतार भी

शकेब जलाली

शिकस्ता छत में परिंदों को जब ठिकाना मिला

शहज़ाद नय्यर

मिरा नहीं तो वो अपना ही कुछ ख़याल करे

शहज़ाद नय्यर

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है

शहज़ाद अहमद

ला-ज़वाल सुकूत

शहरयार

नहीं रोक सकोगे जिस्म की इन परवाजों को

शहरयार

किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया

शहरयार

हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है

शहरयार

इस सोच में ही मरहला-ए-शब गुज़र गया

शहराम सर्मदी

हर दर-ओ-दीवार पे लर्ज़ां कोई पैकर लगे

शाहिद माहुली

सोचता है किस लिए तू मेरे यार दे मुझे

शाहिद कमाल

धूप के ज़र्द जज़ीरों में नुमू ज़िंदा है

शाहिद कमाल

ब-हर्फ़-ए-सूरत इंकार तोड़ दी मैं ने

शाहिद कमाल

अंदर का सुकूत कह रहा है

शाहिद कबीर

यादों की दीवार गिराता रहता हूँ

शाहबाज़ रिज़्वी

इस धूप से क्या गिला है मुझ को

शहाब जाफ़री

दिल पर वफ़ा का बोझ उठाते रहे हैं हम

शहाब जाफ़री

अब कहाँ ले के छुपें उर्यां बदन और तन जला

शहाब जाफ़री

ख़ल्क़-ए-ख़ुदा है शाह की मुख़्बर लगी हुई

शफ़ीक़ सलीमी

ऐ दिल अब और कोई क़िस्सा-ए-दुनिया न सुना

शानुल हक़ हक़्क़ी

ग़म सहे रुस्वा हुए जज़्बात की तहक़ीर की

सय्यद आशूर काज़मी

घुट के रह जाऊँगा बे-एहसास ग़म-ख़्वारों के पेच

सय्यद नसीर शाह

फ़ता-कल्लमू तअ'रफू

सत्यपाल आनंद

शायद अब ख़त्म हुआ चाहता है अहद-ए-सुकूत

सत्तार सय्यद

शहर-ए-ग़फ़लत के मकीं वैसे तो कब जागते हैं

सत्तार सय्यद

उसी किनारा-ए-हैरत-सरा को जाता हूँ

सरवत हुसैन

बढ़ रहे हैं शाम के मौहूम साए चल पड़ो

सरदार सलीम

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