चुप्पी Poetry (page 2)
मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
मौत की जुस्तुजू
वहीद अख़्तर
अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे
वहीद अख़्तर
हर क़दम पर मुझे लग़्ज़िश का गुमाँ होता है
उरूज ज़ैदी बदायूनी
सुकूत वो भी मुसलसल सुकूत क्या मअनी
उम्मीद फ़ाज़ली
हिजाब उट्ठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं
उम्मीद फ़ाज़ली
तारी है हर तरफ़ जो ये आलम सुकूत का
उमर अंसारी
इल्म ओ फ़न के राज़-ए-सर-बस्ता को वा करता हुआ
उमैर मंज़र
एक आवाज़
तख़्त सिंह
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
सवाद-ए-ग़म में कहीं गोशा-ए-अमाँ न मिला
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
मुझ को तन्हा जो पा रही है रात
सय्यद फ़ज़लुल मतीन
हाल-ए-दिल-ए-तबाह किसी ने सुना कहाँ
सय्यद अमीन अशरफ़
शब-ए-विसाल मज़ा दे रही है 'तू' तेरी
सुरूर जहानाबादी
एक दिन मेरा आईना मुझ को
सुरेन्द्र शजर
अश्क आँखों में छुपा लेता हूँ मैं
सुरेन्द्र शजर
उस की जानिब देखते थे और सब ख़ामोश थे
सुलतान रशक
तिलिस्म-ए-कार-ए-जहाँ का असर तमाम हुआ
सुल्तान अख़्तर
साअत-ए-मर्ग-ए-मुसलसल हर नफ़स भारी हुई
सुल्तान अख़्तर
दस्तार-ए-एहतियात बचा कर न आएगा
सुल्तान अख़्तर
न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है
सिराज लखनवी
न पूछ मर्ग-ए-शनासाई का सबब क्या है
सिद्दीक़ मुजीबी
हमारे दर्द की जानिब इशारा करती हैं
शहपर रसूल
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म
शाज़ तमकनत
अजनबी
शाज़ तमकनत
ज़रा सी बात थी बात आ गई जुदाई तक
शाज़ तमकनत
जाने क्या क़ीमत-ए-अरबाब-ए-वफ़ा ठहरेगी
शाज़ तमकनत
नग़्मगी से सुकूत बेहतर था
शरीफ़ मुनव्वर
महफ़िल का नूर मरजा-ए-अग़्यार कौन है
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
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