नग़्मगी से सुकूत बेहतर था

नग़्मगी से सुकूत बेहतर था

मैं था और इक किराए का घर था

कोई मुझ सा न दूसरा आया

यूँ तो हर शख़्स मुझ से बेहतर था

हर-तरफ़ क़हत-ए-आब था लेकिन

एक तूफ़ान मेरे अंदर था

मैं बना था ख़लीफ़ा-ए-दौराँ

यूँ कि काँटों का ताज सर पर था

मैं मुसलसल वहाँ चला कि जहाँ

दो-क़दम का सफ़र भी दूभर था

घिर गया था मैं इक जज़ीरे में

और चारों तरफ़ समुंदर था

एक इक मौज मुझ से टकराई

जुर्म ये था कि मैं शनावर था

वहशतों में बला का था फैलाव

दश्त और घर का एक मंज़र था

एक दीवार दरमियान रही

वर्ना दोनों का एक ही घर था

(411) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shareef Munawwar. is written by Shareef Munawwar. Complete Poem in Hindi by Shareef Munawwar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.