तारी है हर तरफ़ जो ये आलम सुकूत का
तूफ़ाँ का पेश-ख़ेमा समझ ख़ामुशी नहीं
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(680) Peoples Rate This
हो के उस कूचे से आई तो सितम ढा गई क्या
वो चुप लगी है कि हँसता है और न रोता है
बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत
उस इक दिए से हुए किस क़दर दिए रौशन
मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन
अक्सर हुआ है ये कि ख़ुद अपनी तलाश में
हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था
हैं सारे जुर्म जब अपने हिसाब में लिखना
वही दिया कि थीं आजिज़ हवाएँ जिन से 'उमर'
कर अपनी बात कि प्यारे किसी की बात से क्या