वो चुप लगी है कि हँसता है और न रोता है
ये हो गया है ख़ुदा जाने दिल को रात से क्या
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कर अपनी बात कि प्यारे किसी की बात से क्या
जो तीर आया गले मिल के दिल से लौट गया
बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत
मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन
उठा ये शोर वहीं से सदाओं का क्यूँ-कर
छुप कर न रह सकेगा वो हम से कि उस को हम
जिस आईने में भी झाँका नज़र उसी से मिली
लड़ जाते हैं सरों पे मचलती क़ज़ा से भी
मुझे मेहमाँ ही जानो रात भर का
बुरा सही मैं प नीयत बुरी नहीं मेरी
तारी है हर तरफ़ जो ये आलम सुकूत का