वही दिया कि थीं आजिज़ हवाएँ जिन से 'उमर'
किसी के फिर न जलाए जला बुझा ऐसा
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(564) Peoples Rate This
बुरा सही मैं प नीयत बुरी नहीं मेरी
मुझे मेहमाँ ही जानो रात भर का
जिस आईने में भी झाँका नज़र उसी से मिली
बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत
अक्सर हुआ है ये कि ख़ुद अपनी तलाश में
जो तीर आया गले मिल के दिल से लौट गया
मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन
तारी है हर तरफ़ जो ये आलम सुकूत का
छुप कर न रह सकेगा वो हम से कि उस को हम
लड़ जाते हैं सरों पे मचलती क़ज़ा से भी